शुक्रवार, 4 सितंबर 2020

ईश्वर [ अतुकान्तिका]

 

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✍ शब्दकार©

🛕 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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न हवा देखी ,

न समय देखा,

नहीं देखा 

ईश्वर भी किसी ने,

अहसास मात्र

इंद्रियों का

मन का

 हवा और समय

 के  लिए।


जिज्ञासा का विषय 

रहा है,

सदा से ईश्वर,

नहीं अहसास

करतीं इन्द्रियाँ स्थूल,

सूक्ष्म का विषय है

ईश्वर का मूल।


आदमी ने 

आदमी की देह में

ईश्वर बनाया,

पुलिंग और स्त्रीलिंग में,

उसे सजाया मनभाया,

राम, कृष्ण ,ईसा,

शिव ,विष्णु ,हनुमान,

आदमी के 

अनगिनत भगवान,

सरस्वती , लक्ष्मी ,दुर्गा,

अपनी ही तरह सोचा

बनाया भी।


जानता हूँ

नहीं होता है 

कोई लिंग 

ब्रह्म का,

ईश्वर का ,

परमात्मा का,

आत्मा का भी नहीं,

किसी देह में नर 

तो कहीं नारी रही।


अगर है

किसी श्वान का भगवान,

(जहाँ है 

सम्पूर्ण ज्ञान,बल ,धन,

यश ,सौंदर्य और त्याग,)

नहीं होगा 

निश्चय ही 

वह नरदेहवान इंसान,

वह तो होगा 

पूरी तरह 

एक पूँछ और

चार टाँगधारी  श्वान!

समस्त देहधारियों के

यदि हैं कोई ईश्वर,

भगवान,

कदापि नहीं होंगे वे

श्रीराम ,कृष्ण ,हनुमान।


जैसा जीव

वैसा ही ईश्वर,

भगवान,

तोते का तोता,

वराह का वराह,

वह क्यों माने

इंसान की चाहत 

या चाह!

तोते का ईश्वर तोता,

यदि कहीं होता ,

तो वराह का वराह ही

ईश्वर होता।


मानवीय आस्था

और मान्यता का

सृजन है ईश्वर,

अपनों से श्रेष्ठ है

सत्यं  शिवं सुंदरम  ईश्वर।।


💐

 शुभमस्तु !


04.09.2020 ◆10.45 पूर्वाह्न।

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