गुरुवार, 17 सितंबर 2020

मधुर जलेबी [ बाल -कविता ]


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✍️ शब्दकार©

🍁 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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टेढ़ी -  मेढ़ी   मधुर  जलेबी।

लच्छेदार   गोल  जनसेवी।।


'नले खोखले   अँगुली  जैसे।

इनमें  रस भर जाता  कैसे??'


खड़ा  सोचता  एक  फिरंगी।

अजब  मिठाई    है   बेढंगी!!


भरती  मधुर  चासनी  चीनी।

खुशबू  आती  भीनी -भीनी।।


सुबह   नाश्ता  सब ही करते।

कुछ ग्रामीण उदर भी भरते।।


कोई  दही   डालकर   खाता।

मिला दूध   में   कोई   पाता।।


ठंडी  गरम   स्वाद  वह  देती।

बनी  जलेबी   बड़ी   चहेती।।


लच्छेदार    रंग    की   पीली।

नगर-नगर में   बड़ी छबीली।।


गरम जलेबी  किसे  न भाती।

चार  आने में  पाव न आती।।


देखो    बैठा    वह   हलवाई।

मधुर जलेबी   थाल  सजाई।।


💐 शुभमस्तु !


16.09.2020◆6.30 अपराह्न।

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