गुरुवार, 24 सितंबर 2020

बाढ़ [ दोहा ]

 

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✍️ शब्दकार ©

🚣🏿‍♀️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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सदा हानि करती बड़ी,जब आती है बाढ़।

धन या जल की बाढ़ में,सेतु न रहें प्रगाढ़।।


बाढ़ कहा जाता सदा,सीमा का अतिरेक।

मर्यादा  भी  भंग हो,नेक न रहते    नेक।।


जब नौका में जल बढ़ा,त्राहि- त्राहि का शोर।

सब सवार यह चाहते,बचे प्राण  की  कोर।।


बस्ती   डूबी बाढ़ में, चाहें सब ही     त्राण।

एक  नाव पर हैं चढ़े,गाय शेर हित  प्राण।।


निज सीमा को लाँघना, उचित नहीं है मीत।

बाढ़ विनाशक है सदा, मानव के  विपरीत।।


पौधे रोपें अवनि पर,हरियाली हर   ओर।

बाढ़ नहीं आए वहाँ,नहीं पवन का   जोर।।


मानव कारण बाढ़ का,दोहन करता खूब।

ऊसर  बंजर  भू  बनी, उगती कैसे   दूब।।


आए धन की बाढ़ जो,कर ले मानव  दान।

बह जायेगा एक दिन,रहे न कोरी   शान।।


देहशक्ति की बाढ़ में,मानवता मत  त्याग।

अति जब होगी बाढ़ की,झुलसेगा तू आग।


नाम  सुनामी  का  सुना,बाढ़ सिंधु की तेज।

मानव की अति से बनी,हुई सनसनीखेज।।


पंचभूत में बाढ़ के, अलग-अलग बहुरूप।

कभी भूमि कंपन करे, उफ़नाते  हैं  कूप।।


💐 शुभमस्तु !


23.09.2020 ◆12.30अपराह्न।


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