गुरुवार, 10 सितंबर 2020

ग़ज़ल


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✍️ शब्दकार 

🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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भटूरा  है  मगर  साथ छोला नहीं  है।

डोंगा   अभी  एक  खोला  नहीं  है।।


हसीं  नाज़नी औ'  शवाबों का मंज़र,

मेरा   मगर     मन   डोला  नहीं   है।


कानों   ही   कानों   में    होती  हैं   बातें,

खुलकर  अभी   कोई    बोला नहीं है।


ग़लत    कह  रहे    वे  कर - कर इशारे,

सच    की  तराजू    पे   तोला  नहीं है।


चोली  में  जड़े  लाख  सलमा सितारे,

शौक  से  जो   सजाए   चोला नहीं है।


चले   आए   बाज़ार   में  क्या खरीदें,

मगर  साथ   में    एक   झोला नहीं है।


बनाते  हैं   बातें    गला  फाड़ सौ-सौ,

तहजीबों  का बचा  एक तोला नहीं है।


झूठी    गपें    हाँकने   में   वे माहिर,

जुबाँ   में    कभी   रस   घोला नहीं है।


दिखने  में लगता  है   चिकना शरीफा ,

'शुभम' आदमी   आज  भोला नहीं है।


💐 शुभमस्तु !


10.09.2020 ◆4.30 अपराह्न।


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