बुधवार, 30 सितंबर 2020

'इज़्ज़त घर' [ अतुकान्तिका ]


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✍️ शब्दकार ©

🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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बन गए 'इज्ज़त घर',

प्रधान को मिली

भरपूर 'इज्ज़त',

बनवाने के लिए 

घर -घर में 

'इज्ज़त घर'।


उधर भी देखें,

घर की 'इज्ज़त'

हाथ में लोटा लेकर

चल पड़ी 

पिछवाड़े के

खेतों की ओर,

ढूँढ़ती हुई कोई ओट,

करती हुई 

प्रशासन की मंशा पर

गहरी -गहरी चोट।


'इज्ज़त घरों' में

भरे देखे

ईंधन और उपले,

गेटदार स्नानागार,

बैठे हैं कुछ में

सजाकर 'टेढ़े मेढ़े'

कोल्ड ड्रिंक की बोतलें

कुछ अधेड़ दुकानदार,

क्या ही सुंदर

सजे हैं 'इज्ज़त घर' !

और इधर 

ये 'इज्ज़तदार'!

क्या करेगी 

सरकार ?

ले तो गए 

अपना पूरा हिस्सा 

बिचौलिए हिस्सेदार।


'इज्ज़त घरों' की

इज्ज़त पर

पड़ गए हैं ताले,

अब वे चाहे

लकड़ी कंडे भरें

या बेचें गर्म मसाले!

ऑमलेट अंडों के

वे जो चाहें

कर डालें!


पर 

घर की

इज्ज़त तो 

आज भी है

मेड़ों और

 झाड़ियों के पीछे,

हाथ में 

लोटा छलकाती

चली जा रही है,

जो न तब थी

न अब है,

 उसे खुले में

जाते हुए भी

'इज्जत' नहीं

जा रही है।


💐 शुभमस्तु !


30.09.2020◆10.30 पूर्वाह्न।

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