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✍ शब्दकार©
🏵️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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गाली गालों से चली,उर पर मारे चोट।
अपने को अच्छा कहे, बाहर देखे खोट।।
गाली गालों से निकल,पहुँची उनके कान।
उर पर पाहन-सा लगा,मार दिया ज्यों तान।
दाता गाली दे रहा, करो नहीं स्वीकार।
वापस जब जाए वहीं, देना हो बेकार।।
गाली के बदले अगर, गाली दी तुम तान।
असर हुआ बस जानिए,यही एकपहचान।
गाली के विष-बाण को,सहते धीर महान।
ज्यों पाहन से चोट खा,भंग हुआ संधान।।
गाली पा जो चुप रहे, कहलाता वह संत।
देने वाला मूढ़ बन , पड़े तुषार वसंत।।
कायर देता गालियाँ, सहता संत महान।
मोम सदृश जिनके हृदय,बन जाते पाषान।।
गल, गाली का द्वार है,मानव का मुख एक।
खग तो गाते गीत ही,मधुमय जिनकी टेक।।
गल, गाली बन जाय जो,समझें हावी क्रोध।
ज्ञान नष्ट नर का हुआ,शेष नहीं है बोध।।
अगर कसाई कोसता,बकरे को दिन-रात।
बाल न गिरता देह से,क्षणिक न होआघात।।
निकले बिगड़ी बुद्धि से,गाली का जंजाल।
'शुभम'होठ सिल लीजिए,उन्नत होगाभाल।
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