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✍️ शब्दकार ©
🌻 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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फूलों का संसार निराला।
पूजा करें सजाएँ माला।।
ऋतु -ऋतु के हैं फूल निराले।
रंग - बिरंगे खुशबू वाले।।
प्रकृति ने नव जादू डाला।
फूलों का संसार निराला।।
गेंदा, जूही , चंपा , बेला।
है गुलाब महका अलवेला।।
पीला, लाल ,गुलाबी ,काला।
फूलों का संसार निराला।।
गुलमहदी , कनेर है भाती।
देखो छुईमुई शरमाती।।
श्वेत चाँदनी करे धमाला।
फूलों का संसार निराला।।
फूलों से सब्जी फ़ल आते।
आम रसीले सबको भाते।।
लौकी , भिंडी बैंगन काला।
फूलों का संसार निराला।।
फूलों में नर - मादा होते।
सृजन - बीज माटी में बोते।।
क्रिया- परागण ने सब ढाला।
फूलों का संसार निराला।।
चिड़ियाँ,कीट,तितलियाँ आतीं।
क्रिया - परागण हाथ बँटातीं।।
सृजन- बिंदु का खुलता ताला।
फूलों का संसार निराला।।
व्यर्थ नहीं फूलों को तोड़ें।
डाल नहीं पौधों की मोड़ें।।
'शुभम' नेह से भर दें प्याला।
फूलों का संसार निराला।।
💐 शुभमस्तु !
29.09.2020 ● 6.15 अपराह्न।
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