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✍️ शब्दकार ©
🌄 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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रात बीती सघन कीर का शोर है,
नाचता है मगन बाग में मोर है,
पुष्प-कलिका चटकने लगी हैं 'शुभम',
हो गया गाँव में भावता भोर है।।
खुल गए गए हैं नयन ईश से डोर है,
उल्लू बैठा हुआ नीड़ में बोर है,
मंदिरों में टनटना रहीं घंटियाँ,
देख लो जी 'शुभम' हो गया भोर है।।
सरसराती है हवा धूप का जोर है,
छेड़ती रवि - किरण चाँद कमजोर है,
सरिता में उठा नाद कलकल 'शुभम',
शरद ऋतु का सुहाना शिवं भोर है।।
तेरी आँखों में बैठा हुआ चोर है,
शर्माती झिझकती कजल- कोर है,
रात की बात कब तक छिपाए सखी,
अब तो हो ही गया गाँव का भोर है।।
आसमा में घटाएँ गर्ज घनघोर है,
चमकती बिजलियाँ रोर का शोर है,
भादों सावन की वर्षा भरे ताल सर,
अभी तो 'शुभम' सोहता भोर है।।
💐 शभमस्तु !
08.09.2020◆10.00पूर्वाह्न।
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