शुक्रवार, 25 सितंबर 2020

पाँच फीसद [अतुकांतिका ]


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✍️ शब्दकार ©

🏵️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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छिपाने योग्य का

दिख जाना

कहलाता है

नंगापन।


छिपाने योग्य का

 मानक

बनाया किसने 

हमने आपने

मैंने इसने उसने।


छिपाने योग्य?

मानव में

मानव की मान्यता

मानवेतर में नहीं।


छिपाना ही 

मानवता,

अन्यथा पशुता,

कदली-पल्लव

कर -पल्लव

अथवा 

वसन की ओट,

छिपा नहीं पाना

मानव का खोट?


छिपाने योग्य का

कुल आकार

मात्र फीसद पाँच,

पिचानवे फीसद

उघड़ा रहे,

नहीं आती कोई

तृण मात्र भी

मानवता पर आँच!


पाँच फीसद में ही

समस्त मानवता

अथवा 

पशुता का आकार,

जीवित मानव देह में 

वह होता साकार,

देता है उसे

आवरण एक नकार ।


पाँच फीसद

पशुता है ,

तो शेष क्या है?

क्या मानवता का महल

महज पाँच फीसद पर

टिका है।


कोई श्वान ,वराह,

हस्ती ,ऊँट, गर्दभ,

सिंह या सियार,

पाँच फीसद को

आवृत करने को

नहीं लाचार,

कोई नहीं जाना समझा

इसकी दरकार।


समस्त मानवता

मात्र पाँच फीसद में

समाहित,

शेष सब 

एक प्रश्न चिह्न,

ज्वलंत प्रश्न?


पशुता और

मानवता के

विभेद का साज,

मात्र कुछ

लघु आवरण में

ढँके हुए 

समझे हुए 

'शुभम' राज !


💐शुभमस्तु !


25.09.2020◆4.30 अपराह्न।

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