सोमवार, 14 सितंबर 2020

सूफ़ियाना ग़ज़ल

 

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✍️ शब्दकार©

🦚 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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होते  ही सही साँझ मुरली जो बजी  है।

अधरों पे मेरे श्याम के क्या खूब सजी है।


सुनते ही टेर मुरली की चलने लगी गोपी,

आँचल को ढँक रहीं कुल कानि  तजी है।


लगती है आस रास की बैचेन मन बड़ा,

पायलिया गुनगुनाती तगड़ी भी  बजी  है।


राधा के संग आ गईं ललिता विशाखा भी,

मदमाती, गाती, नाचती, सजी -धजी   हैं।


कोई     सँवारे    चूनरी  बाँधे  कोई   गजरा,

सूरतिया एक-एक की पूनम- सी फबी है।


मुस्काते  बंक  दृष्टि  से बाँके बिहारी  जू,

सिर  पर है मोरपंख कटि पीत सजी   है।


श्रीकृष्ण करते नित्य ही लीला नई 'शुभम',

ब्रज के निकुंज बाग में मुरली जो बजी है।


💐 शुभमस्तु!


12.09.2020◆5.45अपराह्न।


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