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✍️ शब्दकार©
🇮🇳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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=1=
बिंदी सोहे शीश पर, वह हिंदी मम बोल।
अंगना सी रसना लसे,मधुर सुधा रस घोल।।
मधुर सुधा रस घोल,घुटी में पी यह भाषा।
कवि का जीवन त्राण,जिंदगी की परिभाषा।।
'शुभम'जटिल विज्ञान,न समझें मोदक हिंदी।
सदा सुहागन मीत, शीश पर दमके बिंदी।।
=2=
बिंदी शोभित शीश पर,नहीं उपानह पैर।
उचित एक स्थान है, करे न तन सैर।।
करे न तन की सैर, नहीं मन को भटकाती।
बदल बदल कर ठौर,नहीं कटि को मटकाती
'शुभम'न करती नाच,सुशोभित अपनी हिंदी।
नियत सदा कवि मंच,शीश पर चमके बिंदी
=3=
बिंदी की महिमा बड़ी,समझें लघु मत मीत।
विधवा-सी भाषा लगे , बिना सुभागी प्रीत।।
बिना सुभागी प्रीत, पैर में पायल सोहे।
बिछुआ अँगुली पाद,नारि की गति को मोहे।
'शुभम' और ही बात,सजीली भाषा हिंदी।
लगती है जब माथ, तभी कहलाती बिंदी।।
=4=
बिंदी एकाकी कहीं , करती नहीं कमाल।
नियत ठौर पर जो सजे,होते सकल धमाल।।
होते सकल धमाल,सौ गुनी ओप सजाती।
देखें तब चमकार,नारि मुख फेर लजाती।।
'शुभम'इंद्र का जाल,अरुणिमा चेतन जिंदी।
सधवा की पहचान, नहीं है बेकस हिंदी।।
=5=
बिंदी पैरों में लगा , किया बड़ा अपमान।
नाक लगी यों गाल पर,क्या नासा की शान।
क्या नासा की शान,आँख माथे पर जैसे।
कंधों पर दो कान,गऊशाला में भैंसे।।
'शुभम'विषमता दीन, करो मत चिंदी चिंदी।
जिसका है जो ठौर,भाल पर जैसे बिंदी।।
💐 शुभमस्तु !
15.09.2020 ◆2.00अपराह्न।
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