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✍ शब्दकार©
🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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अपनी नौका आप खे, जाना है यदि पार।
गह ले कसकर हाथ में,अपनी शुभ पतवार।।
सागर -जगत अथाह है, सबकी अपनी नाव,
मोड़ हवा के रुख सभी, बदलेगा तू धार।
नाव पराई बैठकर,डूब गए बहु लोग,
भँवर -कूप में जो पड़ा, भला करे करतार।
खग -शावक से सीख ले,उगते हैं जब पंख,
छोड़ घोंसला भागता,अपने पंख पसार।
अपना दाना आप ही,अर्जित करते कीर,
बैठ नीड़ में मस्त हैं, घाम न मेघ , तुषार।
जीवन जंगल तो नहीं, बढ़े आप ही आप,
जीवन उपवन है 'शुभम',बना छाँट घर -द्वार।
जीवन का माली मनुज,गोड़ निरा जलसींच,
पोषक भी देना सदा,बने 'शुभम' उपहार।।
💐 शुभमस्तु !
06.09.2020◆12.15 अपराह्न।
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