रविवार, 31 दिसंबर 2023

आओ चलो रेवड़ी बाँटें ● [ व्यंग्य ]

 603/2023


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●© व्यंग्यकार 

● डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्' 

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          मेरे आदर्श प्रिय देश में आदर्श बहुत अधिक पसंद किए जाते हैं। इसी अदर्शप्रियता के कारण यहाँ रेवड़ियाँ बहुत ज्यादा बाँटी जाती हैं।विशेष महत्वपूर्ण बात ये है कि इन रेवड़ियों को बाँटने का पवित्र कार्य अंधों को सौंपा जाता है।इसका भी कोई न कोई कारण तो होता ही होगा। वह यह है कि रेवड़ी बाँटने में अंधे लोग कुछ ज्यादा ही कुशल होते हैं। अंधों की आवंटन - निपुणता सराहनीय मानी गई है। ऐसा क्या विशेष कारण है दो आँख वाले से बिना आँख वाले बाजी मार ले जाते हैं। 

            आप सभी जानते होंगे कि रेवड़ी एक प्रकार का प्रसाद है।जिसमें बाँटने वाले और पाने वाले का हर्र लगे न फिटकरी फिर भी रँग चोखा ही आता है।बाँटने वाले की विशेष योग्यता की चर्चा के अंतर्गत यह बतलाना नहीं भूलूँगा कि उसे अंधे होने के बावजूद उसकी निजत्व अभिज्ञान संवेदन शीलता उसी प्रकार उच्च कोटि की होती है ,जैसे किसी टोही कुत्ते की घ्राण शक्ति चमत्कार पूर्ण होती है।

             जब किसी अंधे को रेवड़ियों का टोकरा थमाया जाएगा और ये कहा जायेगा कि ले भाई इन रेवड़ियों को बाँट दे तो वह बड़ा प्रसन्न हो जाएगा। क्योंकि उसे रेवड़ी बाँटने का ईमानदार सुपात्र समझा गया है। इससे उसे अपने लोगों को खुश करने का मुफ्त मौका भी मिल गया। उसका क्या लगा ?कुछ भी तो नहीं। अब जब रेवड़ियों का टोकरा उसे मिल गया तो वह केवल अपने लोगों अर्थात घर वालों , इष्ट मित्रों, रिश्तेदारों तथा उन लोगों जिनको कृतज्ञ कर सकता है ;की लिस्ट तैयार करता है। सब कुछ उसके दिमाग के आगणक में तैयार कर लिया जाता है। बस फिर क्या ? अब रेवड़ी बाँटने का पवित्र कार्य प्रारंभ कर देता है।

             देखें,अब एक अंधा रेवड़ी बाँट रहा है।मजाल है कि कोई एक भी उसके घर परिवार ,जाति-बिरादरी ,धर्म -मज़हब,गोत्र -फ़िरक़ा का एक बच्चा भी छूट जाए और अन्य घर-परिवार से इतर,जाति,गोत्र, धर्म,मज़हब का ले तो जाए?ऐसा कदापि नहीं हो सकता। वह अंधा घूम फिर कर उन्हीं को रेवड़ियाँ बाँटेगा, जिन्हें वह अपना मानता है। देखने वाले यही तो कहेंगे कि बेचारा अंधा है ,बाँटने में न्याय ही तो करेगा। किन्तु वह कितना न्याय करता है ,यह वही जानता है अथवा पाने वाले।उसकी अदृश्य दूरदृष्टि की दाद देनी पड़ेगी कि बिना देखे हुए उसका लेखा कितना पक्का है !उससे भी अधिक वह बाँटने में पक्का है। तभी तो यह कहावत प्रसिद्ध हो गई कि 'अंधा बाँटे रेबड़ी फिरि -फिरि घरकेंन दे'। 

                   आज के समय में रेवड़ी वितरण में भी राजनीति का विशिष्ट प्रभाव है। यह प्रभाव इस कदर है कि वितरण में आकंठ निमग्न रहते हुए भी राजनीति की महक नहीं आने पाए। वैसे सामान्य रूप से वितरण पूर्णरूपेण अराजनैतिक ही कहलाए,कोशिश यही की जाती है। किन्तु खुशबू और बदबू दोनों में एक विशेषता समान है कि इनको रोकने की ताकत किसी में नहीं है। राजनीतिक बदबू रेवड़ियों में गंध दे ही जाती है।और तब अच्छे -अच्छे अंधों की पोल पट्टी खुल ही जाती है।आज क्या समाज, क्या धर्म,क्या राजनीति, क्या सत्ता सबमें रेवड़ियाँ बाँटी जा रही हैं और खुल्लम खुल्ला बाँटी जा रही हैं ,क्योंकि देश को विकास के शिखर पर नहीं, विनाश के गड्ढे में ले जाने के लिए इन रंगीन विविध रूपिणी रेवड़ियों की विशेष जरूरत है। देश को जितना निकम्मा और काम चोर जब तक नहीं बनाया जाएगा ,तब तक ये देश पुनः गुलाम नहीं होगा। और गुलामीयत यहाँ के डी० एन० ए० में है। यह मुफ्त की रेवड़ियाँ बाँट- बाँटकर बड़ी आसानी से किया जा सकता है और किया भी जा रहा है।बाँटने वाले भी अंधे और पाने वाले उनसे भी महा- अंधे।

 ●शुभमस्तु !

 31.12.2023● 4.30 पतनम मार्तण्डस्य। 

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