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छंद विधान: 1.सिंहावलोकन सवैया चार चरणों का एक समतुकांत वर्णिक छंद है।
2.इसमें 08 सगण (II2 ×8)
=24 वर्ण होते हैं।
3.इसकी प्रथम पंक्ति का अंतिम शब्द दूसरी पंक्ति का प्रथम शब्द होता है।
©शब्दकार
डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
-1-
अब कौन न चाह करे सुख की,
जग कोइ भले दुख में मरतौ।
मरतौ धरतौ डग पाँव बड़े,
अपने सुख हेत सभी करतौ।।
करतौ सब काज बुरे - भल वो,
धन छीनि चुराइ भरे धरतौ।
धरतौ मन में अपराध नहीं,
भव-सागर पार नहीं तरतौ।।
-2-
सद शीतल शीत - बयार चले,
खग -ढोर न चैन मिले पल को।
पल को नहिं नींद लगे रतियाँ,
परसें कब चाह लगे जल को।।
जल को असनान न भावत है,
इक नाक दु नैन भरें छलको।
छलको घट शीश धरे रमणी,
ठिठुराति चली दिन हू ढलको।।
-3-
जिनके उर आग लगी जलनी,
अब कौन उपाय करें सिगरे।
सिगरे नर -नारि न होंय जले,
भलमानुस नाहिं सदा बिगरे।।
बिगरे टपकाय रहे रसना,
पहने तन पे थिगरी - थिगरे।
थिगरे न दिखें अपने तन के,
निज आग में जारि मरे उजरे।।
-4-
रवि पूरब से उठि झाँकि रहे,
चमकाइ रहे मुखड़ा डरते।
डरते नहिं नेंक घटाइ सके,
अति शीत बढ़ौ जन हू मरते।।
मरते खग - ढोर अनेक धरा,
जल -जीव नहीं जल में तरते।
तरते जन छोड़ि गए जन जो,
यमराज लिए पशवा हरते।।
-5-
अपनी - अपनी करनी सबको,
फल देति कभी न कभी नर को।
नर को नहिं केवल लाभ मिले,
कब हानि मिले कितनों डर को।।
डर को कछु काज करे तिय जो,
भरपूर मिले फल हू भर को।
भर को न क्षमा मिलती तिल की,
नर -नारि कँपें तहँ पा थरको।।
शुभमस्तु !
25.12.2024●12.30 प०मा०
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