सोमवार, 23 दिसंबर 2024

चाँद निहारे गगन-चाँद को [ गीत ]

 569/2024

   

©शब्दकार

डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'


चाँद निहारे

गगन-चाँद को

कौन बड़ा है छोट।


लगता बड़ा

धरा से इतना

ले सूरज की जोत,

प्राण चेतना

हीन सदा तू

रजनी प्रभा उदोत,

मैं दिन-रात

पूर्णिमा -ऊजर

निज साजन की ओट।


तू निकला

मैं खड़ी निहारूँ

कब घर आएँ  पीव,

उनका पथ

कर दे रे उज्ज्वल

फैला किरण करीब,

पहने मैं

आभूषण साड़ी

पहने तू न लँगोट।


रुकता पल भर

नहीं रात-दिन

यात्रा पथ में लीन,

तपता कभी

शीत तू झेले

आभा कांति विहीन,

समझ न लेना

ढूँढ़  रही मैं

चाँद  तुझी में खोट।


शुभमस्तु !


17.12.2024●1.15प०मा०

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