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छंद विधान:
1.यह 24 वर्ण का वर्णिक छंद है।
2.इसमें 7 जगण (1$1×7) +1 यगण(1$$) होता है।
3.सुमुखि सवैया में एक और गुरु जोड़ने पर वाम सवैया बनता है।
4.मत्तगयंद सवैया के आदि में एक लघु वर्ण जोड़ देने से यह छंद बन जाता है।
5.इसे केशव ने मकरंद ,देव ने माधवी, दास ने मंजरी और भानु ने वाम नाम दिया है।
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
-1-
प्रभात हुआ कलिका खिलतीं बहु,
है न अँधेरि निशा तम भारी।
अमौन भए खग कीर मनोहर,
नाचत -कूदत हैं नर -नारी।।
अबोध रहे सब जाग गए शिशु,
कूक मचावत आँगन भारी।
श्याम सरोरुह खेलि रहे वहिं,
मातु जसोमति की गृह-क्यारी।।
-2-
अतीत अखंड न लौट सके,
परमारथ के कछु काज करो जी।
सुभोर तपे जब दोपहरी,
मनभावन पावन साज भरो जी।।
सुगंध भरो सद फूल खिले नव,
पातक दूषण दाह हरो जी।
स्वदेश हिताहित जान सदा नर,
ढोर मरें हित देश मरो जी।।
-3-
लली वृषभानु चली नव कुंजनु,
राह मिले ब्रज कुंज बिहारी।
अदेखत ही अँखियाँ जु मिलीं द्वय,
चाह मिलीं नहिं जात सँवारी।।
अबोलत बोलि पड़ीं रसना युग,
आइ गई तन मौन खुमारी।
कहें निज हाल बताउ सखी,
कत चाल न जान परे तव प्यारी।।
-4-
अबूझ अदेख अरूप अनूपम,
आदि प्रभो तव राज न जानें।
अचूक सुदृष्टि अनामय आखर,
वैभव रूप चराचर मानें।।
अधीन सभी जड़ चेतन गोचर,
आज अभी नहिं भी पहचाने।
अबेर नहीं करना घन साँवर,
राज मिले अब लौं नहिं छाने।।
-5-
अलाभ सुलाभ विचार करो मत,
कर्म प्रभाव मिटे नहिं कोई।
अतीत भलौ सबको लगता निज,
मर्म वही जितना फल बोई।।
उचंग न हो कर काज स-धीर,
बचे रस ऊपर केवल छोई।
सुबूत अनेक मिलें जग में,
करनी करते शुभ शोभन होई।।
शुभमस्तु !
29.12.2024●2.00 प०मा०
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