बुधवार, 11 दिसंबर 2024

एक कविशाला बनाऊँ आज से [ नवगीत ]

 560/2024

      

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


सोचता हूँ

एक कविशाला बनाऊँ आज से।


क्यों भटकते

कुछ अटकते हैं उधर,

नोट दे क्रय

कर रहे कविता सुघर,

सोचता हूँ

घोष  कर  दूँ ताज से।


छंद तुक

लय भाव का शिक्षण मिले,

हृदय बगिया में

सुमन   कवि    के   खिलें,

सोचता हूँ

मुक्ति   वाचा - खाज  से।


आधिकारिक

पत्र   सबको  चाहिए,

कर प्रदर्शन

कक्ष   में  लटकाइए,

सोचता हूँ

सबको दिखाएँ नाज से।


शुभमस्तु !


11.12.2024●11.30 आ०मा०

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