575/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
गद्दा गरम
रजाई ठंडी
खिसक रही है रात।
सन्नाटा
झनकार कर रहा
बरस रहा है शीत,
हार गई है
लाल अँगीठी
शीत गया है जीत,
कैसे कहूँ
कहानी तुमसे
जमी जीभ की बात।
पूस चले
ज्यों फूस जले दव
कब सुबह हो शाम,
पिड़कुलिया
डाली पर रटती
राम राम बस राम,
जमी नालियाँ
नाले बिलखे
ओस करे बरसात।
नव दुल्हनियां
आई थी जो
लगा अभी था माघ,
बतियाने में
सकुचाती है
पति है पूरा घाघ,
'शुभम्' न चाहे
मिले तिया से
तनिक न कोई मात।
शुभमस्तु!
23.12.2024● 1.30प०मा०
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