576/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
हेमंती है
हवा हठीली
हाहाकार करे।
हाड़ काँपते
किटकिट बजते
हिलते दुखते दाँत,
बुढ़िया-बुढ़ऊ
छिपे सौर में
भूख मर रही आँत,
कब निकले
गुनगुनी घाम वह
तन की शीत टरे।
सौंधी - सौंधी
भुजिया महके
सरसों की नमकीन,
साग चने का
मकई रोटी
मोटी, नहीं महीन,
बैंगन का
भुर्ता रस रंजक
नित चटखार भरे।
कलरव
पड़ता नहीं सुनाई
चिड़ियों का गुणगान,
पंख फुलाये
पड़ीं नीड़ में
देह रजाई तान,
'शुभम्' माघ
पूसों की सर्दी
क्या-क्या जुलम धरे।
शुभमस्तु !
23.12.2024● 2.45प०मा०
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