मंगलवार, 31 दिसंबर 2024

कृपापुंज हो श्याम राधे प्रभो [वागीश्वरी सवैया]

 592/2024

  

छंद विधान:

1.वागीश्वरी सवैया में 7 यगण (122) के बाद (12) आने से यह छंद बनता है।

2.इसके प्रत्येक चरण में 23 वर्ण होते हैं।

3.इसके चारों चरण एक ही तुकांतता के होने चाहिए।

4.इसके चरणों में 12,11 वर्ण के यति खंड रखने से लय में सुगमता रहती है।

5.इसमें गुरु के स्थान पर दो लघु वर्ण का प्रयोग अमान्य है।


                         -1-

कृपापुंज हो श्याम राधे प्रभो,

                  आप आओ सदा को उबारो मुझे।

पड़ा मैं हुआ बीच में धार में,

                      नाथ मेरे कहाँ हो सँवारो मुझे।।

मिले भक्ति का दान ऐसा महा,

                     ताप कोई नहीं हो सुधारो मुझे।

रखो लाज श्यामा कन्हैया शुभे,

                    जाप लूँ नाम प्यारा पुकारो मुझे।।


                         -2-

रखूँ पाँव में मातु वागेश्वरी,

                  शीश आओ मुझे आप स्वीकारिए।

कृपा आपकी दास को भी मिले,

                काव्य साकार हो आद्र हो  सींचिए।।

मुझे ज्ञान की प्यास ऐसी लगे,

                  भाव आधार लें ज्योति ही दीजिए।

लगे साधना साधती साध्य को,

                         नाव मेरी उसी पार ले लीजिए।।


                         -3-

मुझे साधना में लगा मातु दो,

                  शारदे ज्ञान की ज्योति पाना तुम्हें।

नहीं लक्ष्य कोई मुझे और है,

                  भारती तामसों को मिटाना तुम्हें।।

तुम्हीं शब्द मेरी तुम्हीं काव्य हो,

                  मालिका का बना एक दाना मुझे।

उबारो मुझे मातु वीणा शुभे,

                दास पाँवों का प्यारा बना लो मुझे।।


                         -4-

नदी के सहारे चला पात जो,

                   पार चींटी गई दौड़ती-कूदती।

मिला राह में बात बोली यही,

                  धार मैं थी बही ऊभती -चूभती।।

भला हो नदी का हरे पात का,

                     वे बचाते नहीं तो सदा डूबती।

सभी यों भला जीव का ही करें,

              जान प्यारी सभी को लगी ऊबती।।


                         -5-

बड़ी बात होती नहीं ये कभी,

                  हाथ दोनों बढ़ाएं करें यों भला।

बड़े हों हमारे उरों में छिपे,

                     भाव भारी नहीं हो उरों में जला।।

रहें यों सभी मेल से जोल से,

                मेल भी जोल भी है नरों की कला।

न कोई कहीं है सदा लोक में,

               आदमी आदमी को भला क्यों खला।।


शुभमस्तु !

30.12.2024 ●1.30प०मा०

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