565/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
जा रही हो
पहुँच कर एक फोन करना।
चाहता हूँ
छोड़ मुझको तुम न जाओ,
तुम हँसो
खिलखिल सुमन मुझको हँसाओ,
चाहता क्या
मैं हृदय में मौन भरना?
आदमी का
आदमी से आसरा है,
मधुर हो अथवा
हृदय से जो खरा है,
चाहतीं क्या
तुम नहीं सँग-सँग विचरना?
स्वप्न पाले हैं
हृदय में शहद जैसे,
मान भी मनुहार
लो मत रूठ ऐसे,
जैसे बहा
अब तक बहे पुनि नेह झरना।
शुभमस्तु !
13.12.2024● 2.15प०मा०
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