सोमवार, 30 दिसंबर 2024

सब एक समान नहीं दिन हों [महामंजीर सवैया]

 581/2024

  

छंद विधान:-

1.यह चार समतुकांत चरण का और 26 (12+14) वर्णिक छंद है।

2.इसमें क्रमशः 08 सगण(11$) तथा अंत में लघु गुरु(1$) आता है।

3.प्रत्येक चरण में12 वर्ण पर यति होता है।

©शब्दकार

डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'


                         -1-

बदलो - बदलो युग के लड़को,

             निज मात पिता अरमान बने रहें।

उर से न विलीन सु-मान कभी,

             भर जीवन वे सिर-छान बने रहें।।

जब भूख लगे  तब भोज मिले,

              सिर पै  सुनने तव कान तने रहें।

पद -सेव करौ पितु की जननी,

              झट दौड़ि करौ सब काम कहें रहें।।


                      -2-

बदली - बदली लगती  जगती,

            अब मानव की  मति ही न टिकी रहे।

तन नंग -  धड़ंग उघार  फिरें,

                तिय प्रीतम संग नहीं जु सटी रहे।।

नहिं मानत बात पिता -पति की,

                  नभ डोर पतंग सदा जु कटी रहे।

जब   ब्याहुलि   आइ गई घर में,

                  तबहूँ मितवा सँग जान डटी रहे।।


                      -3-

बदरा बदराह  चले  नभ के,

                  बदली  न रही बदली बदली  रहे।

बिजली चमके  दमके गमके,

                 नभ में कर शोर सदा सुलगी रहे।।

झकझोरि  चले द्रुम बेल हवा,

                     वन -बागनु में बरजोर बनी रहे।

बरसें   बुँदियाँ   घनघोर  धरा,

                    घर -खेतनु की भरपूर सनी रहे।।


                           -4-

जब पूस लगौ जस फूस जलै,

              मम आँखिनु सों जलधार सदा बहे।

तरु ओस चुचाइ -चुचाइ रहे,

                  यह नाकहु नीर बहाइ गदा दहे।।

अब ओढ़ दुशाल चढ़े नभ में,

                 रवि तेज प्रताप न कौन कहाँ सहे।

सब एक समान नहीं दिन हों,

                 वह कौन जु वीर महान सदा रहे।।


                       -5-

अब कोयल मोर सुशांत भए,

                 तमचूर जगे कुकड़ूँ करते रहें।

सित चादर ओढ़ जगी जगती,

                घर खेतनु -बागनु में झरते रहें।।

तन के सब हाड़ बजें जन के,

                जग -जीवन से कछु यों टरते रहें।

जब शीतल ब्यार चले पछहाँ,

               नभ में रवि जी तप भी करते रहें।।


शुभमस्तु!


26.12.2024●3.15प०मा०

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