581/2024
छंद विधान:-
1.यह चार समतुकांत चरण का और 26 (12+14) वर्णिक छंद है।
2.इसमें क्रमशः 08 सगण(11$) तथा अंत में लघु गुरु(1$) आता है।
3.प्रत्येक चरण में12 वर्ण पर यति होता है।
©शब्दकार
डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'
-1-
बदलो - बदलो युग के लड़को,
निज मात पिता अरमान बने रहें।
उर से न विलीन सु-मान कभी,
भर जीवन वे सिर-छान बने रहें।।
जब भूख लगे तब भोज मिले,
सिर पै सुनने तव कान तने रहें।
पद -सेव करौ पितु की जननी,
झट दौड़ि करौ सब काम कहें रहें।।
-2-
बदली - बदली लगती जगती,
अब मानव की मति ही न टिकी रहे।
तन नंग - धड़ंग उघार फिरें,
तिय प्रीतम संग नहीं जु सटी रहे।।
नहिं मानत बात पिता -पति की,
नभ डोर पतंग सदा जु कटी रहे।
जब ब्याहुलि आइ गई घर में,
तबहूँ मितवा सँग जान डटी रहे।।
-3-
बदरा बदराह चले नभ के,
बदली न रही बदली बदली रहे।
बिजली चमके दमके गमके,
नभ में कर शोर सदा सुलगी रहे।।
झकझोरि चले द्रुम बेल हवा,
वन -बागनु में बरजोर बनी रहे।
बरसें बुँदियाँ घनघोर धरा,
घर -खेतनु की भरपूर सनी रहे।।
-4-
जब पूस लगौ जस फूस जलै,
मम आँखिनु सों जलधार सदा बहे।
तरु ओस चुचाइ -चुचाइ रहे,
यह नाकहु नीर बहाइ गदा दहे।।
अब ओढ़ दुशाल चढ़े नभ में,
रवि तेज प्रताप न कौन कहाँ सहे।
सब एक समान नहीं दिन हों,
वह कौन जु वीर महान सदा रहे।।
-5-
अब कोयल मोर सुशांत भए,
तमचूर जगे कुकड़ूँ करते रहें।
सित चादर ओढ़ जगी जगती,
घर खेतनु -बागनु में झरते रहें।।
तन के सब हाड़ बजें जन के,
जग -जीवन से कछु यों टरते रहें।
जब शीतल ब्यार चले पछहाँ,
नभ में रवि जी तप भी करते रहें।।
शुभमस्तु!
26.12.2024●3.15प०मा०
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