590/2024
समांत :आते
पदांत :अपदांत
मात्राभार : 16.
मात्रा पतन : शून्य।
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
अगहन पूस माघ ठिठुराते।
अग-जग को हैं खूब सताते।।
हेमंती चल रहीं हवाएँ।
दुग्ध - दुशाला हैं ओढ़ाते।।
थर - थर काँप रहे नर - नारी।
ओले शीतल जल घन लाते।।
किट-किट बजते दाँत हड्डियाँ।
सभी चाहते भोजन ताते।।
ओस लदी पल्लव - पल्लव पर।
खग मृग ढोर काँप सब जाते।।
आलू सरसों चना मटर के।
खेत खड़े मन में हर्षाते।।
'शुभम्' शीत की अद्भुत माया।
गज़क शकरकंदी हम खाते।।
शुभमस्तु !
30.12.2024●4.00आ०मा०
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