सोमवार, 30 दिसंबर 2024

शीत की अद्भुत माया [ सजल ]

 590/2024

        

  समांत         :आते

पदांत            :अपदांत

मात्राभार        : 16.

मात्रा पतन      : शून्य।


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


अगहन    पूस      माघ     ठिठुराते।

अग-जग   को   हैं    खूब   सताते।।


हेमंती       चल      रहीं      हवाएँ।

दुग्ध   -   दुशाला     हैं     ओढ़ाते।।


थर - थर   काँप   रहे  नर -   नारी।

ओले   शीतल  जल   घन    लाते।।


किट-किट   बजते    दाँत   हड्डियाँ।

सभी    चाहते     भोजन      ताते।।


ओस  लदी  पल्लव - पल्लव  पर।

खग मृग ढोर  काँप   सब   जाते।।


आलू     सरसों    चना    मटर के।

खेत     खड़े  मन     में     हर्षाते।।


'शुभम्' शीत  की   अद्भुत  माया।

गज़क    शकरकंदी   हम  खाते।।


शुभमस्तु !


30.12.2024●4.00आ०मा०

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