566/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
खाना भी
लुढकाना भी उसकी चाहत है।
कोई जिए-
मरे, उसे क्या लेना-देना!
सीधी -टेढ़ी
अँगुली से घी अपना कर लेना,
सुलगे
सारा देश मिले सुकून राहत है।
आग लगाकर
हाथ सेंकता लाश भूनता,
होली का
त्योहार मनाता मनुज-खून का,
मानव का वह
शत्रु, मौत का संग्राहक है।
'शुभम्' भाड़ - सा
देश, बनाया कौन न जाने,
दहक रही है
आग, क्रूर लिखता अफ़साने,
द्रोही वह
साक्षात ,ध्वंश का संचालक है।
शुभमस्तु !
14.12.2024●10.00 आ०मा०
●●●
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें