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[अविश्वास,रामायण,विद्या,नेकी,कालचक्र]
©शब्दकार
डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'
सब में एक
अविश्वास से भक्ति का,नहीं निकट सम्बंध।
द्रवित न होते देवता, देता मलय न गंध।।
अविश्वास उर में बसे, विच्छेदित हो नेह।
कलहपूर्ण गार्हस्थ्य हो, खंडित होते गेह।।
रामायण में भक्ति का, उमड़े सिंधु समीर।
हनुमत जैसे भक्त हैं, लक्ष्मण-से रणधीर।।
रामायण का देश ये, राम पुरुष आदर्श।
सीता जैसी संगिनी, सुथरा विमल विमर्श।।
विद्या की शुभ दायिनी, मातु शारदा नेक।
सदा कृपा उनकी रहे, जाग्रत रहे विवेक।
विद्या जिनके पास है, कला श्रेष्ठ साहित्य।
सद्गुण का भंडार हैं,प्रेम सुधा आधिक्य।।
नेकी जाती साथ में, शेष न जाए साथ।
करते जो नेकी नहीं,पीट रहे निज माथ।।
नेकी में ही नाम है, नेकी यश-भंडार।
करते जो नेकी नहीं, बहें समय की धार।।
कालचक्र रुकता नहीं,गति उसकी अविराम।
हुआ न मानव एक भी, लिया समय को थाम।।
कालचक्र के पाँव से, पिसे क्रूर तैमूर।
शेष न भू पर अप्सरा, नहीं एक भी हूर।।
एक में सब
कालचक्र नित रौंदता, नेकी विद्या सर्व।
अविश्वास का अर्थ क्या,रामायण संदर्भ।।
शुभमस्तु!
18.12.2024●3.45आ०मा०
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