बुधवार, 11 दिसंबर 2024

कब से खड़ी [ गीत ]


555/2024

         


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


कब से खड़ी 

प्रतीक्षा करती

मैं परदे की ओट।


ब्याह किया 

घर में ले आए

भरा  माँग सिंदूर,

कहते हो 

हे प्रियतम तुम हो

किसी स्वर्ग की हूर,

अब वियोग में

क्यों तड़पाते

देकर मन को चोट।


मेरे लाल अधर

मदमाते

करूँ प्रतीक्षा तेज,

दिन को चैन

न नींद नयन में

सूनी -  सूनी सेज,

बतलाओ 

शृंगार किसलिए

मुझमें है क्या खोट!


बिंदिया लाल

भाल की तुमको

बुला रही हे मीत,

नथुनी नाक

सुशोभित मेरी

सहा न जाए शीत,

वक्र भौंह दो

श्याम चिकुर घन

बिखरे  ढँके न कोट।


'शुभम्' सजन

तन-मन की प्यासें

बनी हुईं बरजोर,

पिड़कुलिया

 डाली पर बोले

मुंडगेरी पर मोर,

रहा न जाए

बिना तुम्हारे

अश्रु लिए दृग घोट।


शुभमस्तु !


10.12.2024●8.45 आ०मा०

                       ●●●

[3:40 pm, 10/12/2024] DR  BHAGWAT SWAROOP: 

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