594/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
चलो आज कुछ
कह लें मन की
मिलीं बहुत दिन बाद।
बहू ठीक ही
रखती होंगीं
भोजन रोटी दाल,
ठीक समय पर
मिलता होगा
हालत क्यों बेहाल?
खाल लटक
आई है अब तो
झेले दुःख विषाद।
थकी-थकी-सी
लगती बहना
पूछो नहीं अतीत,
नहीं रहे वे
दुख में बीतें
अब तो सब विपरीत,
छिन गिन -गिन
दिन काट रही हूँ
आती उनकी याद।
लगता अब तो
हमें उठा ले
ईश्वर अपनी गोद,
बीत गए वे दिन
जो सुख के
मिलता था जब मोद,
अब तो बस
यों पेट भरें हम
बिना दाँत क्या स्वाद ?
शुभमस्तु !
30.12.2024●11.15प०मा०
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