595/2024
छंद विधान:
1.गंगोदक सवैया चार चरण का वर्णिक छंद है।
2.यह 8 रगण (212×8) से मिलकर बना है।
3.इसे दास ने लक्षी सवैया, और केशव ने मत्तमातंग लीलाकर सवैया नाम दिया है। इसे खंजन सवैया भी कहा जाता है।
-1-
साधना मैं करूँ ध्यान में मैं धरूँ,
पूजता हूँ तुम्हें कष्ट मेरे हरें।
एकदंती उमापूत आओ प्रभो,
विघ्न सारे हमारे पलों में टरें।।
सिद्धि देते सदा ज्ञान की सम्पदा,
सङ्ग हों शारदा धीरता को वरें।
भाव हों मानवी नष्ट हों दानवी,
देश में ख्याति का भव्य भूषण भरें।।
-2-
ज्ञान की दायिनी भाव की भाविनी,
भव्यता भूषिता तारिणी शारदे।
शब्द - भंडार से नेह से प्यार से,
काव्य भूषण बना भक्त को तार दे।।
छंद के बंध का बोध देना हमें,
शक्ति की भक्ति का भारती प्यार दे।
गद्य हो पद्य हो दिव्य ही कथ्य हो,
कामना है यही मान का हार दे।।
-3-
वेश से देश को बंधु यों क्यों ठगो,
काम का प्राण से साथ ही साथ है।
साधु हो संत हो देश के तंत्र हो,
मोह के मंत्र हो गाथ ही गाथ है।।
कौन है जो बचे ईश की आँख से,
कौन है जो कहे देश का नाथ है।
न्याय भी है यहीं अंकिता भी यहीं,
बंद आँखें करे सत्य का पाथ है।।
-4-
बोल का मोल है भाव का रोल है,
आदमी लाजमी आदमी तो रहे।
आदमी रूप में भेड़िया क्रूर है,
बात को जो कहे तो डटा ही रहे।।
वंश का अंश जाता नहीं है कभी,
सत्यभाषी सदा सत्यभाषी रहे।
प्रीति की नीति से भीतियाँ टूटतीं,
भाव की संपदा वैर नाशी रहे।।
-5-
मात को तात को मान हो मानवो,
पाल -पोसा गया त्राण भी प्राण भी।
प्रात जो जाग के वंदना जो करे,
कीर्ति आयू बढ़े राम का बाण भी।।
नाम की दुंदुभी विश्व - गुंजार हो,
तोड़ दे मोड़ दे क्रूर पाषाण भी।
वेद भी हैं वही पंच भूतादि वे,
मोक्ष भी मात से तात निर्वाण भी।।
शुभमस्तु !
31.12.2024●2.00प०मा०
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