सोमवार, 30 दिसंबर 2024

मात्र अंगुलियाँ [अतुकांतिका]

 583/2024

             


©शब्दकार

डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'


करांगुलियों की तरह

एकता नहीं देखी

थप्पड़ हो या पकड़

मुक्का हो या जकड़

अरे आदमियो !

कुछ इनसे भी सीख।


बहुउद्देशीय

ये हाथ के दो पंजे,

घने काले केश हों

या निचाट गंजे,

कमाल ही करती हैं

ये दशाङ्गुलियाँ!


हाथ धोकर

किसी के

पीछे पड़ना हो,

अथवा किसी

दुश्मन से लड़ना हो,

पीछे नहीं रहतीं

दशांगुलियाँ!


और तो और

पाँव की भी

साथ देने में

आगे दौड़ती हैं,

हार हो या जीत

पीछा नहीं छोड़ती हैं,

ये पदाङ्गुलियाँ!


न कोई हिन्दू

न मुसलमान!

न पंजाबी

न किस्तान,

सभी की सभी

अँगुली महान!


हीनता बोध नहीं

छोटाई का,

सवर्णता की ऊँची

नोज़ नहीं

अपनी बड़ाई का,

सब मात्र अंगुलियां,

न छुआछूत 

न भय का भूत,

धन्य हो हमारी

बीस कर- पदांगुलियाँ!


शुभमस्तु !

26.12.2024 ●6.45प०मा०

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