गुरुवार, 12 दिसंबर 2024

काँटों से देश बचाएँ [अतुकांतिका ]

 562/2024

      

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


यों तो निकाला 

जा सकता है

किसी काँटे से काँटा भी,

पर वे मानते हैं

उनका जन्म ही 

हुआ मात्र चुभने के लिए।


उलझना और  उलझाना

उनका काम है,

बिना इसके उन्हें

मिलता कब विश्राम है!

वही तो करते हैं 

वे दिन - रात यहाँ।


देश का क्या

वह तो चलता ही रहेगा,

वे देश के लिए 

कुछ भी  न करें

कोई क्या करेगा ?


वे  अपना काँटापन छोड़ 

फूल क्यों बनें?

अपनी शुष्कता 

तीक्ष्णता पर क्यों न तनें!

यही तो उनका

वास्तविक गुणधर्म है!

अपना अस्तित्व दिखाने का

'शुभकर्म' ? है!



जैसे सड़क पर

कोई गतिरोधक,

वैसे ही संसद मार्ग पर

विपक्ष छद्म शूल -बोधक,

देशद्रोह ही 

उनकी  शक्ति है!

विदेशी आक्रांताओं से

विशेष अनुरक्ति है!


'शुभम्' शूलों से 

बचाव ही समझदारी है,

देशभक्ति है

देश हितकारी है,

आओ हम सब

 काँटों को जानें,

उनकी विध्वंशक 

मानसिकता को पहचानें,

गृहयुद्ध की 

आकस्मिकता को टालें,

निष्कर्ष यही कि

देश को बचाएं।


शुभमस्तु !


12.12.2024●11.00आ०मा०

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