बुधवार, 11 दिसंबर 2024

अलग-अलग ढपली बजें [ दोहा गीतिका ]

 554/2024

    

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


परनारी    परद्रव्य   पर,  टपक  रही है   लार।

मनुज   बहुत  रहते  यहाँ, निज मन से बीमार।।


'शुभम्'  सकल संसार में,भटक रहे कुछ लोग,

जाना   है किस  ओर को,बंद प्रगति के  द्वार।


अलग - अलग ढपली  बजें, सबकी चारों  ओर,

बहरे    सबके    कान हैं,   नाक चढ़े  नक्कार।


नेताओं   ने   देश   को,   समझा  गृह    उद्योग,

कक्ष   भरे  हैं   नोट   से ,  सोना किलो हजार।


कुर्सी  - कुर्सी    जप  रहे, नेता  आठों    याम,

आते    हैं   हर  रात  में ,सपने  बँगला     चार।


देशभक्ति    के    नाम  पर , लूट  रहे  हैं    देश,

शान    बढ़ाता   मान    की,  उनका कारागार।


'शुभम्'  खूँटियों पर सजा,जिनका चारु चरित्र,

बने   हुए वे   देश के  ,शिला गले का    भार।


शुभमस्तु !


09.12.2024●4.00आ०मा०

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