564/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
कवियों में
क्या नया खास है।
हाड़-माँस की
वही देह हैं,
नौ- नौ सबके
द्वार गेह हैं,
महाकाव्य लिखता है कोई
कोई रचता उपन्यास है।
एक सदृश
दिल सबका धड़के,
ये कवि है
क्या कुछ भी बढ़ के ?
ब्रह्मलोक में विचरण करता
रहता नित नव भाव वास है।
कहते
रवि मंडल से ऊपर,
उड़ता है
कवि रहे न भू पर,
'शुभम्' न कहता गप्प वृथा ये
समझ न लेना कहीं हास है।
शुभमस्तु !
12.12.2024●2.30प०मा०
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