589/2024
छंद विधान:
1.लवंगलता सवैया में 8 जगण(1$1×8) के साथ अंत में एक लघु वर्ण होता है।
[(121×8)+1]
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
-1-
चले वन को जब राघव राम,
सिया वन साथ चलीं सँग साजन।
तजे सब औध -विलास अनेकन,
नेंक नहीं कर रोध विचार न।।
रहे अब राम न सीय उदार,
मिलें सुख भोग यही अब कारन।।
कहें किससे पति की अनुगामिनि,
आज बनों निज गेह सँवारन।।
-2-
लिखौ लिपि भाल न मेटि सको,
सब होय वही विधना लिखि देवत।
वही उगते सब बीज धरा,
जब कर्म किए जग में अनुसेवत।।
बने कृमि साँप गधे खग श्वान,
धरे बहु देह अखाद्यन जेंवत।
मिलें तन मानव के अहि रूपक,
नित्य डसें नर नाव न खेवत।।
-3-
करें करनी जग में शुभ ही,
फल तो मिलता यह सोच सभी नर।
बुवें कटु नीम सशूल बबूल,
फलें नहिं आम उसूल हृदै धर।।
मिले नर योनि सुभाग बड़े मति,
को न सुला मधरामृत पाकर।।
सभी खग ढोर सभोग जिएं,
सब कर्म करें नर जीवन लाकर।।
-4-
पड़ें पद कंटक संकट धूम,
नहीं कछु जो कि सदा सत समरथ।
सदा नहिं धूप न छाँव अनूप,
विरूप सुरूप अकूत अकारथ।।
बढ़ें नहिं बाल भवें थिर नेक,
बढ़ें सिर केश अबाध यथारथ।
मिले सब काज बँटे सबके,
कर मूरख जीव न जी निज स्वारथ।।
-5-
पढ़े सब वेद नहीं कछु ज्ञान,
अधीर सदा मन धी बहि-अंतर।
तजे नहिं काम न नारि कभी,
कपि चाह रहा जपि माल सुतंतर।।
नहीं कछु भेद न शूकर श्वान,
सदा बँधि मूढ़ रहा निज तंतर।
कहें तन से सब मानव एक,
नहीं अघ काटन एकहु मंतर।।
शुभमस्तु !
29.12.2024●8.15 प०मा०
●●●
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें