582/2024
छंद विधान:-
1.किरीट सवैया चार चरण का सम वर्ण वृत्त है।
2.यह भगण ($11×8) पर आश्रित होता है।
3.प्रत्येक चरण में भगण की 8 आवृत्तियाँ होती हैं।
4.चारों चरणों की तुकांतता एक समान होती है।
©शब्दकार
डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'
-1-
कोकिल बोल सुने जब से हम,
सूरत देखन को ललचावत।
मंजुल रूप निहारि सकें तव,
देह गुलाबनु -सी महाकावत।।
पायल की ध्वनि बाजत है नव,
अंग गुलाल सु-रंग लगावत।।
मो वश में अब नाँहिं प्रिये मन,
देहनु आज अनंग जगावत।।
-2-
भीतर -भीतर आग जले तन,
बाहर से मुख नेह जतावत।
प्रीति न जान परे उजले तन,
अन्तर में अति दाह जलावत।।
मानव दानव भेद नहीं कछु,
आदम आदम को तन खावत।
हाय नहीं अब भेद रहौ तृन,
होय कुपूत औ तात सतावत।।
-3-
गीत मल्हार नहीं कजरी अब,
वेद न मंत्र पढ़े जनता अब।
आग लगी चहुँ ओर महारण,
कृष्ण कहाँ कर चक्र धरें जब।।
देश जले परदेश जलें जन,
शांति मुई दुष्क्रान्ति रही सब।
क्रूर भए जन भूप कहें जग,
नाश भयौ सिगरे जग कौ अब।।
-4-
भारत देश महान कहें जन,
भारत के गुण खूब सुनावत।
मारत -मारत खाइ रहे नर,
लाश जलाइ-जलाइ जु तापत।।
नागनु पालि डसाइ कहें यह,
है यह पुण्य प्रताप सतावत।।
काल बली नहिं माफ़ करे अब,
कृष्णहु रामहु अंश नसावत।।
-5-
स्वारथ लागि सधें सिगरे जन,
स्वारथ साधि लगें मनभावन।
स्वारथ पूरण होत नहीं अब,
जान नहीं पहचान न पावन।।
मीत न रीत न प्रीत बची जग,
जेठ समान तपे घन सावन।
एक न शेष बिना स्वारथ जन,
जीवत हैं जन मानुष खावन।।
शुभमस्तु !
26.12.2024●6.30प०मा०
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