बुधवार, 11 दिसंबर 2024

लिखना आना नहीं जरूरी [ गीत ]

 559/2024

    

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


लिखना आना नहीं जरूरी

नोटों की ताकत में दम हो।


रंग - बिरंगे    मढ़े   फ्रेम   में

पत्र प्रमाणन के हों  हासिल,

सजे कक्ष जब  देखें  तुलसी

सूरदास  हो   जाएँ  गाफ़िल,

कौन  पूछता  कैसा   लिखते

नोटों से ही  हर  - हर बम हो।


नेपाली    या    देशी   कोई 

अच्छा  है  कविता का धंधा,

 खड़े   अनाड़ी  लगा  कतारें

देने   वाला   भी  बस  अंधा,

कालिदास उतरे  धरती  पर

ठोंक रहे वे अपनी खम हो।


कविता  रोती  नौ - नौ   आँसू

नहीं  शारदा  को   वे    जानें,

कृपा रमा   देवी   की   बरसी

लंबी    - चौड़ी     डींगें   तानें,

'शुभम्' धुरंधर को   क्यों  पूँछें

कोई  नहीं किसी से कम हो।


शुभमस्तु !


10.12.2024●11.45प०मा०

                   ●●●

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...