गुरुवार, 12 दिसंबर 2024

सृजन- शृंखला का तीसवाँ फूल [ नवगीत ]

 563/2024

       

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


कली में है

सृजन -शृंखला का तीसवाँ फूल।


शब्दों की लतिकाएँ

शब्दों के पेड़,

शब्दों के पल्लव दल

शब्दों की मेड़,

कहीं लगीं हैं बाड़

कहीं  नियम गया भूल,

हरी - नम्र फली में है

सृजन-शृंखला का तीसवाँ फूल।


हर फूल की

अपनी अलग ही सुगंध है,

कहीं कोई व्यंग्य 

कहीं  कविता   निर्बंध  है,

कुंडलिया या गीतिका

दिया चौपाई दोहा को तूल,

शोध - कृति  में ये

सृजन -शृंखला का तीसवाँ फूल।


पद्य की विद्योत्तमा

गद्य  के  कालिदास हैं,

सृजन की लतिका पर

बारह मास मधुवास है,

ओढ़ा दिया 'शुभम्' ने बस

अक्षर -शब्द का दुकूल,

हेमंत में प्रस्फुटित हो

 सृजन -शृंखला का तीसवाँ फूल।


शुभमस्तु !


12.12.2024●2.00पा०मा०

                 ●●●

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...