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छंद विधान:
1.आठ जगण (121×8)के वृत्त को मुक्तहरा सवैया कहते हैं।
2.11,13 पर यति होता है।
3.सुमुखि सवैया के अंत में एक लघु जोड़ देने से मुक्तहरा सवैया बनता है।
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
-1-
खिले बहु फूल गुलाब बड़े,
महके चहके निखरे खुशहाल।
चढ़ें नित देवनु शीश सभी,
सजते फबते बजते नवताल।।
मिले बड़भाग गए घर त्याग,
न मानुष ग्रीव पड़े ततकाल।।
नहीं समभाग मिलें सबको,
फँसा नर जीव अनेकनु जाल।।
-2-
चलें सरि तीर नहान करें,
जमुना जल के नहिं और समान।
कदंब खड़े तट मंजु बड़े,
तहँ झूलत क्रीड़त श्याम सुजान।।
सभी तहँ गाय चरें वन में,
ब्रजवासिन की शुभ शानहु मान।
बड़े तरु छोंकर और करील,
करें किल्लोल करें खग गान।।
-3-
नहीं यह खेल कहें कवि वृत्त,
नहीं यह एक सवाय बखान।
अनेक प्रकार बताय रहे,
गिनते गिनती कवि विज्ञ सुजान।।
विज्ञान बड़ौ तुक बंधन कौ,
बिगड़े न कहीं सच ही यह मान।
न हीन न बोध रहे मन में,
सपना न यथारथ मीत उदान।।
-4-
रमा उर में रमती कवि के,
कवि तुंग हिमाचल की रसधार।
वहाँ सुर में सरकार बनें,
नित रंग खिले नव दिव्य ससार।।
चले सत पंथ वही कवि संत,
असंतन के जह बंटहुधार।
नहीं कवि आम सकाम अकाम,
अनाम बसे जग में सुखहार।।
-5-
सजे दल शीत जमे कण ओस,
हरी तरु बेल सजे हर खेत।
नमी भर गाँव सुहात न छाँव,
न भू पर पाँव न भाते रेत।।
बड़ी अति रात सुभाय प्रभात,
करें नहिं गान विहंग सवेत।
अमा यह पूस गए रवि रूठ,
दिखाइ न दीठ कुसंग सहेत।।
शुभमस्तु !
28.12.2024●9.00प०मा०
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