584/2024
छंद विधान:
1.यह चार चरण का समतुकांत वर्णिक छंद है।
2.इसमें सात भगण ($11×7) +गुरु लघु ($1) अर्थात भानस से चकोर सवैया बनता है।
©शब्दकार
डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'
-1-
आजु चलो जमुना तट पै,
तहँ धेनु चरावत आवत श्याम।
खौंसि चलें कटि में मुरली,
सँग आवत कृष्णसखा सरनाम।।
रूप निहारि निहाल बनें हम,
औरन सों हमको नहिं काम।।
एकहि रूप बसौ मन में,
तब लौटि जु आवत हैं निज धाम।।
-2-
देख सखी अपनी मटकी,
अब लेहु सँवारि मिलें घनश्याम।
खाइं न बात कछू बिगड़े,
टुटिहै मटकी बचनों नहिं चाम।।
गेहनु जाएँ त सास लड़े,
घर में करती फिरती बदनाम।
जाइ रही दधि बेचन को,
गुजरी गुजरी थमि के अविराम।।
-3-
गाय चराय रहे वन में,
सब ग्वालहु बाल सखा वन वास।
श्याम बिना मन नाहिं लगौ,
कत देर भई करते कत रास।।
दीखत आइ रहे सिर पै,
धरि मोरपखा करते मुख हास।
आस-बिसास बंधौ मन में,
सब फूलि उठे वन के घन कास।।
-4-
छाँव घनी वट की इतनी,
तहँ राजत हैं हरि श्याम सुदाम।
गाय रहीं चरि झाड़िनु में,
नहिं पास जु एकहु गाम न धाम।।
खोलि जु पोटरि बाँट रहे,
हरि मूठ चना भरि बात न आम।
आपस में खिलवाड़ करें,
हँसि श्याम सखा अपने घनश्याम।।
-5-
साँझ भई अब तौ वन में,
घर लौटि चलें अपनी सब गाय।
रास राचावन को निधि में,
सब बोल सखा अपनी निज राय।।
मात यशोमति याद करें,
मन में उठते -बिठते नव भाय।
बोलि परे सब साथ सखा,
चलनों चलनों चलनों यह राय।।
शुभमस्तु !
27.12.2024●11.45आ०मा०
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