सोमवार, 30 दिसंबर 2024

अगहन पूस माघ ठिठुराते [गीतिका ]

 591/2024

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


अगहन    पूस      माघ     ठिठुराते।

अग-जग   को   हैं    खूब   सताते।।


हेमंती       चल      रहीं      हवाएँ,

दुग्ध   -   दुशाला     हैं     ओढ़ाते।


थर - थर   काँप   रहे  नर -   नारी,

ओले  शीतल  जल    घन    लाते।


किट-किट   बजते    दाँत   हड्डियाँ,

सभी    चाहते     भोजन      ताते।


ओस  लदी  पल्लव - पल्लव  पर,

खग मृग ढोर  काँप   सब   जाते।


आलू     सरसों    चना    मटर के,

खेत     खड़े  मन     में     हर्षाते।


'शुभम्' शीत  की   अद्भुत  माया,

गज़क    शकरकंदी   हम  खाते।


शुभमस्तु !


30.12.2024●4.00आ०मा०

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