591/2024
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
अगहन पूस माघ ठिठुराते।
अग-जग को हैं खूब सताते।।
हेमंती चल रहीं हवाएँ,
दुग्ध - दुशाला हैं ओढ़ाते।
थर - थर काँप रहे नर - नारी,
ओले शीतल जल घन लाते।
किट-किट बजते दाँत हड्डियाँ,
सभी चाहते भोजन ताते।
ओस लदी पल्लव - पल्लव पर,
खग मृग ढोर काँप सब जाते।
आलू सरसों चना मटर के,
खेत खड़े मन में हर्षाते।
'शुभम्' शीत की अद्भुत माया,
गज़क शकरकंदी हम खाते।
शुभमस्तु !
30.12.2024●4.00आ०मा०
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