571/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
छिद्र ढूँढ़कर
चौड़ा कर दो
राजनीति इसको
कहते हैं,
नहीं किसी को
देश दीखता,
देशभक्त का तमगा
टाँगे,
रौंद रहे वे
देश नित्य ही।
सत्तासन की
सबको चाहत,
जैसे भी
मिल पाए ,
भले भाड़ में
जनता जाए,
सब सुविधा ये पाएँ।
नहीं दूध से
धुला एक भी,
चोर-चोर मौसेरे भाई,
बोतल पर लेबल
चिपकाए,
एक रात में
लेबल बदले,
साँपनाथ
वासुकि कहलाए!
जिनसे पलना
उन्हें चूसना
पेंशन वेतन
राशन पानी,
मुफ्त सभी कुछ
धंधा अच्छा
ऊँचे भवन
राज की धानी।
अपना उल्लू
सीधा करना
एक उसूल
यही है सबका,
सत्ताधारी या
विपक्ष हो
'शुभम्' नहीं है
चिंतन इनका।
शुभमस्तु !
19.12.2024● 4.45 प०मा०
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