574/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
जिसने अपना पाठ रटा है।
उसका ही तम-तोम फटा है।।
निकला सूरज ज्योति बिखरती,
अंबर में अति भव्य छटा है।
पौष मास हेमंत ठिठुरता,
सघन कोहरा यहाँ कटा है।
चना नाचता सरसों सरसी,
गोल बैंजनी सजा भटा है।
गलियारे में बालक खेलें,
ओढ़ रजाई वृद्ध सटा है।
टप -टप ओस बरसती नभ से,
कभी गगन में श्वेत घटा है।
'शुभम्' जमी है ओस कोस तक,
जल कण पल्लव सघन पटा है।
शुभमस्तु !
23.12.2024● 12.45आ०मा०
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