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छंद विधान:
1.अरसात सवैया चार चरणों का वर्णिक छंद है।
2.इसमें सात भगण ($11) के साथ एक रगण ($1$) होता है।
[भगण×7 +रगण]
©शब्दकार
डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'
-1-
वानर बागनु में फिरते जहं,
पेट भरें कछु भोजन पाइकें।
दौड़त गाँवनु में छत ऊपर,
छीनत ढूंढत बाखर जाइकें।।
लेत उठावत भागत कूदत,
कोइ खवावत प्यार सों आइकें।
हाथ गिलोल लिए जन धावत,
आँख दिखावत है सतराइकें।।
-2-
बालक खेल धमाल करें बहु,
नाचत कूदत औसर पाइके।
आयु बढ़े तब भेद उगे मन,
खेलत बालक बालक जाइके।।
जानहिं भेदहु लिंगन कौ तब,
छोरिनु सों छिपि प्यार जताइके।
ढूंढत औसर एकल मेलन,
गोपन ही रखि बात बताइके।।
-3-
यौवन में नहिं शीत सतावत,
घाम न ताप न नेंक सतावती।
नाचति देह उघारि जनी तहँ,
आइ बरातनि नाच नचावती।।
पौरुष नंग -धड़ंग नहीं वहँ,
सूटहु कोटहु धारत धावती।
हीट बढ़ी जनि के तन में वहँ,
स्लीवहु छाँड़ि सुदेह सुहावती।।
-4-
गावति गीत चली सजनी सजि,
नाचति -कूदति संग सुहागिनी।
कोइ बजाय रही डफ-ढोलक,
गाइ रही तिय बंध सु-रागिनी।।
फागुन मास धमाल धमाधम,
रंग गुलाल लगाय सुहासिनी।
कौन कहे ब्रज की महिमा शुभ,
नंद किशोर कमाल करावनी।।
-5-
बोलत बोल झरें जस सौरभ,
कांति सुदेह कही नहीं जा रही।
सूरत साँवरि कान्ह सुहासिनि,
वीथिन -वीथिन बेढव छा बही।।
तीरथ धाम लली वृषभानजु,
आइ रही ब्रज संगिनु आ कही।
मोहन सोहन जोहन आवत,
बैयरबानिहु हीय श्यामजु चाहहीं।।
शुभमस्तु !
27.12.2024●7.15प०मा०
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