572/2024
©व्यंग्यकार
डॉ०भगवत स्वरूप 'शुभम्'
बनाते रहें वे जनहितकारी योजनाएँ,करते रहें वे देश हितकारी काम,इससे हमें क्या ?हम तो वह बिल्ली हैं जिसको यदि नहीं मिलेगा पीने को दूध और नहीं मिलेगी चाटने को मलाई तो भरी हुई मटकी को फैला देना ही हमारा कर्तव्य है।अरे भाई !हमें उस कहावत को भी तो सही सिद्ध होने देना है कि बिल्ली यदि खाएगी नहीं तो लुढ़का तो देगी ही।इसलिए रात -दिन हमें मटकियाँ लुढ़काने और दूध दही फैलाने में ही आनंद आता है। अब इस फैलाने गिराने से किसी का कोई नुकसान होता है ,तो हो। हमें इससे कुछ भी नहीं लेना- देना। हमारा जो काम है,वही हम कर रहे हैं। हमसे जो अपेक्षा की जाती है या की जा सकती है,भला उसके विपरीत हम कैसे जा सकते हैं! हम वही करते हैं ,जो हमारे लिए करणीय है।जो हमारा करणीय है ,वही हमें वरणीय है।आइए आप भी हमारे कर्तव्य का स्तुतिगान करें, हमें हमारे कर्म के लिए महान कहें,जिससे हम चैन की नींद सोएँ और शांति से रहें।
हम जो चाहते थे,हमें नहीं मिला। वे जो चाहते थे,उन्हें मिल गया।हमारी और उनकी चाहत भी एक ही थी।जब एक ही चीज की चाहत के दो प्रत्याशी हों तो इच्छित वस्तु मिलेगी तो एक को ही। मलाई की मटकी में से दो लोग तो मिल बाँट कर खा नहीं सकते।कोई साझे की मटकी तो है नहीं,जो साझेदारी से काम चला लिया जाए। आप यह भी अच्छी तरह से जानते हैं कि साझे की मटकी चौराहे पर फूटती है,तो दर्शकों की भीड़ मज़ा लूटती है।भला मटकी के प्रत्याशियों को क्या मिलता है! इसलिए मटकी पर एक का अधिकार ही तर्कसंगत फबता है।अब वह अधिकार हमें नहीं मिला,तो खीझ तो स्वाभाविक है।उन्हें न मिलता तो जो खीझ आज हमारे पास है ,वह उनकी झोली में होती। अब हमारे हिस्से में मटकी लुढ़काना ,मलाई का माल न खा पाना, रसना में रिसता हुआ रस भर आना, फिर भी तरस -तरस जाना ;बस यही तो शेष रह गया है।
आप या कोई भी हमसे यह उम्मीद भी क्यों करें कि हम कोई देशहित की बात सोचेंगे या देश हित करेंगे। यह काम तो मलाई खाने वालों का है, मटकी मालिकों का है कि वे देश हित की सोचें देश हित करें।हम तो मलाई भरी मटकी को देख-देख दूर से ललचा रहे हैं।इसीलिए तो ऊधम मचा रहे हैं। अब ये भी न मचाएं तो क्या करें ? हमारा भी तो कुछ अस्तित्व है ,अपने अस्तित्व प्रदर्शन के लिए कुछ न कुछ करना तो जरूरी है।कुछ धुँआँ ,धक्कड़, धमाल,बवाल और सवाल तो होते रहने चाहिए ।हम तो इन्हीं से जिंदा हैं।
ये तो एकदम साफ़ है कि देशभक्ति हमारे हिस्से की चीज नहीं है। हमें तो विपरीत ही चलना है। सीधी बहती हुई गंगा को उलटा बहाना है। सही को भी गलत बताना है।जो हो रहा है,उसके उलट जताना है।इसलिए धक्कामुक्की से बात बने तो वह भी कर जाना है। अपना महत्त्व जो दिखाना है।हर सत्य को असत्य बताना है। देश को गुमराह कराना है। यही हमारा धर्म है। विपरीतता हमारा कर्म है। इसी में सत्तासन का छिपा हुआ मर्म है। हम जितना ही उलटा चलेंगे,हमारे जैसे उलटे हमारे साथ हो लेंगे ।क्योंकि उन्हें भी तो हमारे समर्थन में झंडा ऊँचा करना है।देश जले तो जले। हमें क्या !हम देश और जनता का कितना भी भला सोचें, कोई हमें भला नहीं कह सकता। हमें देशभक्त नहीं बता सकता। विपरीतता ही हमारा मंत्र है।इसी से तो चलता हमारा तंत्र है।अब कोई भले ही कहे कि यह देश विरोधी हैं,षडयंत्र है।पर हम हैं कि अपनी करनी के लिए पूर्णतः स्वतंत्र हैं।हमें इनको शांत नहीं रहने देना है, मलाई-मटकी को हिलाते- झुलाते रखना है, भले ही उसका स्वाद हमें नहीं चखना है। पर इन्हें भी चैन से नहीं रखना है।
विरोध हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है।मलाई -मटकी हमने भी चाटी है। थोड़ी नहीं भरपूर चाटी है।देश विरोधी रहना हमारी परिपाटी है। इतिहास की परतें उधेड़ो इसकी बड़ी गहरी घाटी है।पर अब तो हमारा राजफाश हो ही चुका है।यही हाल रहा तो अब पुनः मटकी हाथ नहीं आने वाली।मटकी का निकल गया दीवाला और हमारी हो गई दिवाली की होली। अब कितना भी मलें मस्तक पर चंदन रोली,सारा देश ही कर रहा है हमसे ठिठोली।कितने भी चलवाएँ ईंट पत्थर या बम या बरसायें गोली, ये जनता भी नहीं रही अब इतनी भोली कि जो भी भरमाए उसकी हो ली ? लोग जाग गए हैं और हम विपरीत वाहकों के सो गए हैं।
हम तब भी विपरीत थे ,किंतु छद्म।और आज खुलेआम विपरीत हैं।कोई हमें भारत - भक्त न समझे। यहाँ की सीधी -सादी जनता को अब इतना मूढ़ भी न जाने। उन्होंने अपना भला-बुरा जान लिया है।अपना अतीत चीन्हा है और भविष्य पहचान लिया है। वे जान गए हैं कि हम विपरीतवाही ही आस्तीन के रंगीले नाग हैं।हम देश भक्त नहीं,देश विरोधी हैं ;छद्म आग हैं।हमें उलटा ही चलना है।सारे देश को और उसके भविष्य को छलना है। हमारे अनुगामियों और अनुयायियों को तो गलना है;क्योंकि हम उनके भी शुभचिंतक नहीं हैं।बस उन्हें इस्तेमाल करना है और उसके बाद फेंक देना है। 'यूज एंड थ्रो' के उसूल पर चलना है।हमारा एक मात्र धर्म विरोध जो है, स्पीड ब्रेकर।यदि स्पीड ही ब्रेक ही नहीं हुई तो हमारी सार्थकता ही क्या !
शुभमस्तु !
22.12.2024●9.15आ०मा०
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