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छंद विधान:
1.सुमुखि सवैया जगण (जभान) [121 ×7 +लघु गुरु ]की आवृत्ति पर चलता है।
2.मदिरा सवैया के प्रारंभ में एक लघु लगाने से सुमुखि सवैया बन जाता है।
लघु (भानस ×7) +गुरु
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
-1-
कभी न कभी यदि चंचल हो मन,
मानव की मति खूब हरे।
मिले नहिं राह कुपंथ मिले,
तहँ लोग कहें जन ये बिगरे।।
चलें वह चाल न हो अभियोग,
रहें उर के कपड़े सुथरे।।
बुरी वह बात न हो हित में,
सब मान कथा जग में उजरे।।
-2-
सखा मनमोहन के सिगरे मिलि,
माखनचोर बिलार बने।
मिले इक ठौर सभा करते,
सिग आपस में ठिकठाक तने।।
रहौ हुशियार न जान परे कछु,
मीत जु बाँटिक खात चने।
गए मिलि पौरि नहीं कछु शोर,
दही मिलि हाथ गुवाल सने।।
-3-
दिनेश कहें जड़ मानव जाग,
न सो इतना सत पंथ चले।
रहे मत हाथनु हाथ धरे,
अपनी मति आप ही आप छले।।
न बोल बड़े इतने मुख से,
धरि मौन सुमारग क्यों न चले!
मिले पल तोहि गिने जग में,
इक आय घड़ी जब प्राण टले।।
-4-
महेश कहें सुन पारवती मम,
लोग भए बड़चाल छली।
चलें न सुपंथ कुपंथ नराधम,
मात किए दुर दांत बली।।
गिरे मुख लार दिखे पर नार,
नहीं अब रक्षित कांत कली।
यहीं अब पास लिखा नर नाश,
करें हरि श्याम उजास भली।।
-5-
अदेर चलें बदराह टलें,
सब लोगन को सदबुद्धि मिले।
नहीं पर वित्त रहे नर चित्त,
मिटे अघ ओघ समृद्ध किले।।
चले पतवार खुलें नवद्वार,
खिलें सुमनाद्र तुषार हिले।
रहे यह देश न किंचित क्लेश,
मिटें अघ म्लेक्ष रहें न गिले।।
शुभमस्तु !
28.12.2024●12.15 प०मा०
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