577/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
पेट सभी का
रोटी माँगे
रहना हो जिस हाल।
तन पर
भले फटे-मैले हों
कपड़े तारम -तार,
तीन ईंट का
चूल्हा लेता
उदर भूख का भार,
सिर पर भले
नहीं हो छत जो
बन जाता वह ढाल।
करने की
कुछ भी मजबूरी
बहा देह का स्वेद,
हर अभाव में
रोटी होती
व्यक्त न करती खेद,
सबसे बड़ा
वेद है रोटी
बदले सबकी चाल।
कम से कम में
काम चलाना
सबल मनुज की सोच,
केन पतीली
के बर्तन भी
करें न मन को पोच,
'शुभम्' कहाँ तक
और बखानें
जटिल जीव जंजाल।
शुभमस्तु !
24.12.2024●5.00आ०मा०
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