518/2022
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✍️ शब्दकार ©
🦢 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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अपने नाम के पहले
'कवि' शब्द जोड़कर
खुश हो लेता हूँ मैं,
हर्ष का मीटर
तब और भी
ऊपर उठ जाता है,
जब कोई जानकार मित्र
कवि जी कह जाता है।
मेरा सुधी श्रोता
जब तालियाँ बजाता है,
तब तो मेरा रक्त
अनतोल बढ़ जाता है,
कोई प्रिय पाठक
जब रचना सुनता है,
मेरे ही समक्ष
उम्दा कसीदे बुनता है,
तब तो कहना ही क्या?
यद्यपि काव्य के
गुण - दोष
वह स्वयं भी नहीं जानता,
इसलिए उसकी
अनुशंसा का
मैं बुरा भी नहीं मानता,
क्योंकि वह भी तो
कविता का
विधान नहीं पहचानता,
और अधिक
लम्बी - चौड़ी नहीं तानता!
'कवि जी' के नाम की
मेरी ख्याति है,
कविता मेरी खेती है,
यहाँ कविता का
देहात है,
सब प्रशंसक ही हैं,
आलोचक एक नहीं,
जो भी कहता हूँ
वह सौ फीसद सही,
कोई भी क्यों कहे
नहीं! नहीं!! नहीं!!!
समाज का एक
अलग प्राणी,
जिसकी अपनी
है विशिष्ट वाणी,
सब कवि कहके ही
बुलाते हैं,
आदर के साथ
माला भी पहनाते हैं,
शॉल- शृंगार से
सम्मान भी बढ़ाते हैं,
कवि - सम्मेलनों में
मोमेंटो दिलाते हैं,
आख़िर तो हम
नाम से पहले
कवि शब्द लगाते हैं।
🪴 शुभमस्तु !
09.12.2022◆8.45प.मा.
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