528/2022
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✍️ शब्दकार ©
🍿 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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नेता बाँटें रेवड़ी, मत की मन में चाह।
टोपी चरणों में रखे, झूम विजय-उत्साह।।
रबड़ी खाते आप वे, मतमंगों के वेश।
बाँट रहे हैं रेवड़ी, लूट - लूट कर देश।।
घर वालों को रेवड़ी, बाँटें अंधे लोग।
औरों को देते नहीं, बढ़ा स्वार्थ का रोग।।
जनता खुश पा रेवड़ी, ले जाकर जो आड़।
स्वयं मलाई चाटता, झुकवाता है भाड़।।
नहीं रेवड़ी के लिए, देना अपने प्राण।
बुरा -भला सोचें सदा,नेता करें न त्राण।।
नेताओं को चाहिए,कुर्सी, पद, सम्मान।
दिखा रेवड़ी दूर से,लूट रहे धन - धान।।
मीठी गुड़ की रेवड़ी,तिल- तिल मारें डाल।
परजीवी नेता सभी, लेते तेल निकाल।।
नेता को समझे नहीं, जड़मति वह इंसान।
बाँटें मीठी रेवड़ी, मीठे जहर समान।।
राजनीति है दाँव की, रेवड़ियों के दाँव।
मतदाता को ठग रहे,डगर नगर हर गाँव।।
रूप बदलकर रेवड़ी,आती जन के पास।
चिड़ियाँ चुग लें खेत जब,होता कृषक उदास
🪴 शुभमस्तु !
13.12.2022◆7.30 पतनम मार्तण्डस्य।
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