गुरुवार, 29 दिसंबर 2022

बोल रहे तमचूर 🐓 [ गीतिका ]

 543/2022

 

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✍️ शब्दकार ©

🌞 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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सूरज से  उज्ज्वल  प्रभात है।

तम को  देता  नित्य  घात है।।


उपवन में खिलती हैं कलियाँ,

सरवर  तल पर  पद्म जात है।


शॉल  श्वेत  ओढ़े  रवि  आया,

पौष मास में  तुहिन - पात है।


छिपे   हुए    नीड़ों   में   पंक्षी,

शीतल बहती शिशिर वात है।


बोल   रहे   तमचूर   गली  में,

कहते जागो  अब  न  रात है।


बैठे    ओढ़     रजाई   कंबल,

बाबा - दादी   कंप   गात   है।


'शुभम्' खेलते कूदें बालक,

ठंड   हमें   लगती  न तात है।


🪴शुभमस्तु !


26.12.2022◆7.00आरोहणम् मार्तण्डस्य।

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