गुरुवार, 29 दिसंबर 2022

पियराए दिन ⛱️ [ नवगीत ]

 551/2022

   

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✍️ शब्दकार ©

🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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पीत पल्लव -से

झड़ गए

पगुराए दिन।

पकड़ नहीं

पाए हम

हाथ आए दिन।।


उगा गोला

लाल  - लाल

श्रीगणेश काम।

थकीं अस्थि 

चूल - चूल

हो गई शाम।।


लालच में 

पैसों के

ललचाए दिन।


नौंन तेल

लकड़ी का

करते जुगाड़।

देखा है

समय ऐसा

झोंका भी भाड़।।


दाने को

एक-एक

तरसाए दिन।


वर्ष क्या

वय भी ये

हो गई तमाम।

कल का भी

पता नहीं

घिस गया चाम।।


बल खाते

मदमाते

पियराए दिन।


नए  --नए 

चेहरों में

देखे नवरंग।

बदली हुई

चाल देख

हुए हम दंग।।


बदल के 

मुखौटे भी

दुख दिए दिन।


रस गिरा 

बूँद -बूँद

खाली हाथ हम।

संगिनी के

साथ चले

कदम -दर-कदम।।


सबक नित

सिखाते हुए

अति भाए दिन।


🪴 शुभमस्तु !


29.12.2022◆2.00

पतनम मार्तण्डस्य।

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