551/2022
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✍️ शब्दकार ©
🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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पीत पल्लव -से
झड़ गए
पगुराए दिन।
पकड़ नहीं
पाए हम
हाथ आए दिन।।
उगा गोला
लाल - लाल
श्रीगणेश काम।
थकीं अस्थि
चूल - चूल
हो गई शाम।।
लालच में
पैसों के
ललचाए दिन।
नौंन तेल
लकड़ी का
करते जुगाड़।
देखा है
समय ऐसा
झोंका भी भाड़।।
दाने को
एक-एक
तरसाए दिन।
वर्ष क्या
वय भी ये
हो गई तमाम।
कल का भी
पता नहीं
घिस गया चाम।।
बल खाते
मदमाते
पियराए दिन।
नए --नए
चेहरों में
देखे नवरंग।
बदली हुई
चाल देख
हुए हम दंग।।
बदल के
मुखौटे भी
दुख दिए दिन।
रस गिरा
बूँद -बूँद
खाली हाथ हम।
संगिनी के
साथ चले
कदम -दर-कदम।।
सबक नित
सिखाते हुए
अति भाए दिन।
🪴 शुभमस्तु !
29.12.2022◆2.00
पतनम मार्तण्डस्य।
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