515/2022
[धूप, धवल, धनिक,धरती ,धरित्री]
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✍️ शब्दकार ©
🌞 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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🌱 सब में एक 🌱
नवल अनंगा कामिनी,नवयौवन की धूप।
कंचनवर्णी सोहती,मलयानिल अनुरूप।।
ऋतु शीतल हेमंत की,सुहृद गुनगुनी धूप।
कर-आलिंगन बाँधती,पौषी सुखद स्वरूप।।
छाया धवल हिमाद्रि की,पथआँगन वन धाम
छाई अगहन पौष में,कुहरा शीत ललाम।।
दुग्ध- धवल तव भव्यता,छुआ न जाए पोर।
उर में नव रोमांच है,तू वसंत की भोर।।
रूप- धनिक धन्या अहो,शब्द हुए हैं मौन।
वाणी कुछ कहती नहीं,रूपसि नवले कौन।।
धन के रूप हज़ार हैं,अगणित धनिक महान
गर्व नहीं करना कभी,तभी मिले जग-मान।।
धरती धारण कर रही,सकल सृष्टि का भार।
होना हमें कृतज्ञ है,माँ की कृपा अपार।।
धरती में हर तत्त्व का,सृजन सभी का कोष।
अन्न,फूल, फल,नीर से,उर भरती संतोष।।
ऋणी धरित्री के सदा,मानुष सभी प्रकार।
वही उठाती क्रोड़ में, वही सँभाले भार।।
जननी धरती कुक्षि में,संतति को नौ मास।
सदा धरित्री अंक में,ले तब आती श्वास।।
🌱 एक में सब 🌱
धवल धूप धरती धरे,
धन्य धनिक भू - धाम।
धैर्य धरित्री जीव को,
रहती सदा अकाम।।
🪴शुभमस्तु!
06.12.2022◆10.30 प.मा.
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